एसडीओ आमला का अतिक्रमण हटाने का आदेश सही, न्यायालय ने वादी का दावा किया खारिज

सरकारी जमीन पर अवैध गोदाम निर्माण को लेकर आमला न्यायालय का बड़ा फैसला

Janta darbar24 आमला से कमलेश माकोड़े की रिपोर्ट

एसडीओ आमला का अतिक्रमण हटाने का आदेश सही, न्यायालय ने वादी का दावा किया खारिज

सरकारी जमीन पर अवैध गोदाम निर्माण को लेकर आमला न्यायालय का बड़ा फैसला

आमला – बस स्टैंड आमला स्थित एक विवादित सरकारी प्लॉट पर अतिक्रमण कर बनाए गए गोदाम को लेकर चल रहे लंबे विवाद में आमला न्यायालय ने स्पष्ट आदेश जारी करते हुए कहा है कि एसडीओ राजस्व आमला द्वारा पारित अतिक्रमण हटाने का आदेश विधि सम्मत है और उसे गलत नहीं कहा जा सकता। इस फैसले के साथ ही न्यायालय ने वादी का दावा खारिज कर दिया है, जिससे प्रतिवादी पक्ष को बड़ी राहत मिली है।

नजूल भूमि पर दो पक्षों का दावा

यह विवाद बस स्टैंड आमला स्थित नजूल भूमि सीट नंबर 43/1 पर लगभग 1500 वर्गफुट भूमि को लेकर था। वादी ने इस भूमि पर गोदाम निर्माण कर लिया था, जबकि प्रतिवादी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि उक्त भूमि पर प्रतिवादी के ससुर को शासन द्वारा पट्टा प्रदान किया गया था, और वे लगभग 50 वर्षों से इस भूमि पर निवासरत रहे हैं।

एसडीओ ने पाया था अवैध कब्जा

प्रतिवादी द्वारा एसडीओ मुलताई (लिंक कोर्ट आमला) में अतिक्रमण हटाने की विधिक प्रक्रिया शुरू की गई थी। मामले की जांच के लिए पटवारी, नजूल एवं राजस्व निरीक्षक को मौके पर भेजा गया, जहां वादी द्वारा 1500 वर्गफुट से अधिक भूमि पर अवैध कब्जा पाया गया। इसके बाद एसडीओ ने अतिक्रमण हटाने का आदेश पारित किया।

वादी की दलील खारिज, न्यायालय ने माना एसडीओ का आदेश विधिसम्मत

वादी ने एसडीओ के आदेश को चुनौती देते हुए दावा किया कि आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के विरुद्ध था, और वह स्वयं उक्त भूमि पर निवास करता है। लेकिन न्यायालय ने इस दलील को अस्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि वादी न्यायालय में यह साबित नहीं कर सका कि उसे उक्त भूमि पर वैध अधिकार है। न्यायालय ने यह भी माना कि एसडीओ द्वारा की गई कार्यवाही विधि के सामान्य अनुक्रम के अनुरूप है।

अब प्रतिवादी को भूमि के कब्जे की उम्मीद

न्यायालय के निर्णय के बाद प्रतिवादी पक्ष को उम्मीद है कि उन्हें उनकी पैतृक भूमि का कब्जा शासन द्वारा जल्द सौंपा जाएगा। यह निर्णय न केवल सरकारी भूमि की सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक मिसाल भी है कि प्रशासनिक आदेशों के खिलाफ झूठे दावों से न्यायालयों को गुमराह नहीं किया जा सकता।

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